लेखनी कविता -विजयी के सदृश जियो रे -रामधारी सिंह दिनकर

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विजयी के सदृश जियो रे -रामधारी सिंह दिनकर वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो  चट्टानों की छाती से दूध निकालो  है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो  पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ ...

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